क्यों है भाई दूज के दिन यमुना नदी में स्नान का महत्व

दिवाली के 5 दिनों के त्योहार की समाप्ति भाईदूज के त्योहार से होती है। भाईदूज का पर्व भाई-बहन के स्नेह और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व दीपावली से दो दिन बाद यानी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को पड़ता है। भाईदूज के साथ 5 दिन के दिवाली के उत्सव समाप्त हो जाता है। इस साल 29 अक्टूबर को यानि कि आज भाईदूज मनाया जा रहा है। भाईदूज यम द्वितीया, भातृ द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर यम देव की पूजा भी की जाती है। इस दिन भाई बहन को टीका करके उनकी सुख-समृद्धि की कामना करती है।



मान्यतानुसार इस दिन जो यम देव की उपासना करता है, उसे असमय मृत्यु का भय नहीं रहता है भाई दूज को यम द्वितीया भी कहते है। यम द्वितीया के दिन यमराज की पूजा से पहले यमुना नदी में स्नान किया जाना शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार, इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के पास गए थे। बहन ने उनका तिलक लगा कर स्वागत किया और प्रेम पूर्वक भोजन कराया था। भाईदूज से जुड़ी एक प्रचलित कथा के अनुसार एकबार यमलोक स्वामी यमराज अपनी बहन यमुना से लंबे समय बाद भेंट के लिए जाते हैं। यमुना जी भाई यम को अचानक इतने बाद देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं और भाई का खूब आदर सत्कार करती हैं। बहन यमुना द्वारा किए गए सेवा-सत्कार से यमराज प्रसन्न होकर बहन से वर मांगने को कहते हैं।
ऐसे हुई भाईदूज की शुरुआत
तब यमुना जी वरदानस्वरूप भाई यमराज से सभी प्राणियों को अपने भय से मुक्त करने का वचन मांगती है, यम ऐसा सुन कर कहते हैं कि यह तो असंभव है। यदि सभी मेरे भय से मुक्त होकर मृत्यु से वंचित हो गए तो पृथ्वी इन सभी को कैसे सह पाएगी। संसार में संकट आ जाएगा। तुम कुछ और वर मांग लो इस पर यमुना कहती हैं कि फिर आप मुझे यह आशीर्वाद प्रदान करें कि इस शुभ तिथि के दिन जो भी भाई-बहन यमुना में स्नान कर इस पर्व को मनाएंगे, वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाएंगे। इस पर प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को वरदान दिया कि जो भाई-बहन इस दिन यमुना में स्नान करके के इस पवित्र पर्व को मनाएंगे, वह अकाल-मृत्यु तथा मेरे भय से मुक्त हो जाएंगे। तभी से इस दिन को यम द्वितीया और भाई दूज के रूप में मनाया जाने लगा।
यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर को मारने के बाद अपनी बहन सुभद्रा का घर गए थे। वहां सुभद्रा ने उनके मष्तक पर तिलक लगा कर आरती उतार कर उनका स्वागत किया था। तभी से भाई दूज का यह पर्व मनाया जाने लगा।